बहन की पीड़ा ने बनाया मार्शल आर्ट एक्सपर्ट ।


अपनी बड़ी बहन की पीड़ा से दुखी एक स्कुली छात्र ऐसा पुलिस वाला और मार्शल आर्ट ट्रैनेर बन गया जिसका जीवन अब महिलाएँ को अपनी रक्षा खुद करने के लिये प्रोत्साहित तथा उनको तैयार करना है ।


पश्चिम बंगाल के कोननगर के 36 वर्षीय कांस्टेबल अरूप दास पुलिस की ड्यूटी ख़त्म करने के बाद लड़कियों को नि :शुल्क आत्मरक्षा के गुर सीखा रहे है । हाल ही मे उन्होने कोलकाता पुलिस द्वारा आयोजित तेजशिवनी शिविर मे भी विभिन आयु वर्ग की 150 से अधिक महिलायों को किसी हमलावर से खुद को बचाने के लिये मार्शल आर्ट का उपयोग करना सिखाया ।
अरूप बताते है ,''मेरी बड़ी बहन का पति उसे पिटता था । सुबह उसके चेहरे पर चोटे देखकर मुझे बहुत गुस्सा आता था लेकिन तब मै असहाय था । मै बहुत ही छोटा था और ना ही जानता था कि उसका जवाब कैसे दिया जाये । मै नही चाहता कि किसी भी अन्य औरत को मेरी बहन की तरह हिंसा का सामना करना पड़े ।''
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2004 मे पुलिस मे भर्ती होंने के बाद उसने अपनी बहन को राजी किया कि वह अपने पति के खिलाफ पुलिस मे घरेलू हिंसा की शिकायत दे तथा उसके तलाक के लिये केस दर्ज करे ।
अरूप ने कहाँ ,'' दीदी को इतने साल तकलीफ मे देख कर मुझे एहसास हुआ कि एक महिला के लिये आत्मरक्षा सीखना कितना महत्वपूर्ण है । मै अपनी 9 साल की बेटी इशिका को भी यह सिखाने की कोशिश कर रहा हूँ ।''
अरूप अपने 16 महीने के बेटे दीक्षण के बड़े होने पर उसे भी अपने जैसे मार्ग का पालन करने के लिये प्रोत्साहित करना चाहता है ।
वह इस बात पर जोर देते है कि महिलाएँ को बलात्कार तथा यौन उत्पीड़न के अन्य रूपों को रोकने के लिये आत्मरक्षा के तरीकों को सीखना ही एकमात्र तरीका है ।
10 कक्षा के बाद उन्हे मजबूरी मे पढ़ाई छोड़नी पड़ी क्योंकि तब 1991 मे उनके गाँव मे हाई स्कूल नही था । निकटतम स्कूल 30 किलोमीटर दुर था जहाँ रोज आना -जाना बेहद कठिन था । इसके बाद अरूप ने सारा वक़्त मार्शल आर्ट सीखने मे लगा दिया । 
वर्तमान मे वह हासिट्ग्स के पुलिस परीक्षण स्कूल मे सप्ताह भर व्यस्त रहते है । जहाँ वह उत्पाद शुल्क ,सीमा शुल्क और जेल विभाग के सिपाहियों तथा अधिकारियों को निहत्थे लड़ने के गुर सिखाते है । रविवार को वह कोननगर ओलीमपीक Institute ground मे 3 घंटे तक लड़कियों को self defense training देते है ।
अरूप की आधी छात्रायें झोपड़ -पट्टियाँ मे रहती है । जिन्हे वह नि :शुल्क training देते है  । उन्होने कहाँ ,''मुझे घर-घर जाकर उनके माता -पिता को मनाना पड़ा कि उन्हे आत्मरक्षा सीखने की ज़रूरत है । वे बेहद गरीब परिवारों से है लेकिन उनमे से कुछ तो बेहद ही प्रभावशाली है ।''
उनसे मार्शल आर्ट सीख रही कुछ बच्चियों ने राज्य स्तरीय प्रतियोगियों मे पदक भी जीते है । अरूप उन्हे आगे बढ़ने मे मदद करना चाहते है । परंतु मैट्स ,किक पैड्स ,चैस्ट गॉर्ड ,शीन ऐड एल्बो प्रोटेक्टर से लेकर पंच बेग जैसी मार्शल आर्ट से जुड़ी चीजो की कमी बाधा बन रही है ।
वह बताते है ,''मै क्लब का आभारी हूँ कि उन्होने हमे यहाँ मुफ्त मे अभियास करने की इजाजत दी । लेकिन हमारे पास वीतीय सहायता नही है । मै जो कुछ जानता हूँ उसे अच्छे तरीके से छात्राओं को सिखाने की कोशिश कर रहा हूँ । लेकिन एक प्रशिक्षक के रुप मे वह नयी तकनीकों मे सुधार और नय तरीके सीखने का प्रयत्न करते रहते है ।