ईमानदार कोशिश -True story of a man

एक घटना बदल सकती है आपकी जिन्दगी ,कुछ ऐसा ही हुआ संजीव धर्मानी के साथ जो अपनी आपबीती कुछ इस तरह बताते है ।


मेरा जन्म अत्यंत गरीब परिवार मे हुआ था । पिता जी अधिक पढ़े -लिखे नही थे और सख्त स्वभाव के भी थे ,इसलिये कोई नौकरी नही कर पाये । माता जी अक्सर बीमार रहती थी । घर मे हम सिर्फ तीन सदस्य थे । मैने दसवी तक पढ़ाई बहुत कठिन हालात मे पूरी की । फ़िर छोटे -मोटे काम करने लगा ,जिससे घर का खर्च चल सके लेकिन इससे गुजारा नही हो पा रहा था । हारकर मैने एक कारखाने मे मज़दूरी करना शुरू कर दिया ।
अभी महज तीन माह ही बीते थे कि दुख का पहाड़ फ़िर से टूट पड़ा । वह salary मिलने का दिन था और शाम को salary मिलने के साथ ही मुझसे यह कह दिया गया कि कारखाने मे अब तुम्हारी ज़रूरत नही है । कल से काम पर मत आना । 
मैने खाने का डिब्बा उठाया और चलने लगा ,तभी मेरा उतरा हुआ चेहरा देखकर वहाँ डयूटी दे रहे सुरक्षाकर्मी ने उदासी का कारण पूछा । मेरी सारी बात सुनकर उसने कहाँ कि मैनेजर साहब को घर के कार्य के लिये एक नौकर  की  की आवश्कता है ,अगर तुम चाहो तो उनसे बात कर लो ।
मैने ऐसा ही किया ,क्योंकि मेरे पास और कोई रास्ता नही था । मैने मैंनेजर साहब से बात की । उन्होने मुझे अपने बंगले मे कपड़े धोने ,बर्तन साफ करने ,साफ -सफाई आदि के लिये रख लिया ।
परिवार चलाने के लिये नौकरी की ज़रूरत थी ,सो अगले दिन से मै काम पर जाने लगा । मै सुबह से देर रात तक उनके घर का काम करता । धीरे - धीरे समय बीत रहा था और किसी तरह मेरे परिवार का भरण -पोषण हो रहा था ।
इस दौरान एक बात मेरे मन मे हमेशा खटकती रहती कि इस नौकरी से क्या मै जिंदगी गुजार पाऊगा । जब भी काम से खाली होता तो यही बात मेरे मन मे चलती थी । इस तरह से लगभग दो साल बीत गये ।
एक दिन मैनेजर साहब कुछ हँसी -मजाक के मूड मे थे । वे मुझसे मजाकिया लहजे मे बात कर रहे थे । उस दिन मैने हिम्मत जुटाकर उनसे पुछ लिया कि बड़ा आदमी कैसे बना जा सकता था ?
मैने कहाँ कि साहब मेरी किस्मत फूटी है ,मुझे नही मालूम मैने क्या गुनाह किये थे  मै गरीब और मजदूर बन गया । बहुत डर लगता है कि कैसे जिंदगी का सफर तय कर पाऊँगा ! इतना कहते ही मै फुट -फुट कर रोने लगा ।
मैनेजर साहब ने मुझे प्यार से समझाते हुए कहाँ कि किस्मत से कुछ नही मिलता ,जो भी चाहिये उसके लिये मेहनत करो । मेहनत और पढ़ाई करने से ही जीवन खुशहाल बन सकता है । उस दिन मैनेजर साहब ने मुझे काम करने के साथ -साथ आगे पढ़ने की सलाह दी । वे कहने लगे कि मन मे लगन होनी चाहिये ,पढ़ने और सीखने की कोई उम्र नही होती है ।
मैने उसी समय उनकी बात को मन मे उतार लिया । अब मै उनके घर का काम करने के साथ ही आगे की पढ़ने bhI करने लगा । कुछ दिन बाद इंटरमीडिएट की परीक्षा के प्राईवेट फार्म आये । मैने फार्म भर दिया और मन लगा कर पढ़ने लगा । मेहनत रंग लायी । मैने परीक्षा अच्छे नम्बरों से पास कर ली । फ़िर धीरे - धीरे M.A तक की पढ़ाई पूरी कर ली ।
अब मै प्रतियोगी परीक्षाओं से जुड़ी पुस्तकें पढ़ने के साथ -साथ अध्यापक प्रवेश परीक्षा की तैयारी करने लगा । मेरी यह कोशिश भी कामयाब रही । अध्यापक प्रवेश परीक्षा मे नवा शहर (पंजाब ) मे मुझे तीसरा स्थान मिला । 
आज मै सरकारी अध्यापक हूँ । ईश्वर की अनुकंपा से मेरी पत्नी भी सरकारी अध्यापिका है । जिंदगी बहुत सुकून से कट रही है । अगर मैनेजर साहब ने उस दिन पढ़ने के लिये प्रेरित ना किया होता तो शायद आज भी मै घरेलू नौकर ही रहता । सचमुच उनकी सीख ने मेरा रुतबा और जीवन बदलकर रख दिया ।
मै जीवन के इस अनुभव के आधार पर कहना चाहता हूँ कि पढ़ने की कोई उम्र नही होती और ईमानदार कोशिश कभी भी असफल नही होती ,अच्छा जीवन जीना है तो पढ़ाई जरूर करनी चाहिये ।
संजीव धर्मानी ,आनंदपुर साहब (पंजाब )